पशुपति व्रत की विधि प्रदीप मिश्रा (Pashupati vrat vidhi): पशुपति व्रत के बारे में आप सभी ने तो जरूर सुना होगा। और आप भी इस व्रत को करने के लालसा रहते होंगे। लेकिन सायद आपको इस व्रत को रखने की सारी विधि पता नहीं होगी।
अगर ऐसा है तो आप बिलकुल भी चिंता मॉल करिये। क्योंकि इस आर्टिकल(पशुपति व्रत की विधि) के मदद से मैं आपको पशुपति व्रत से जुडी सारी जानकारी देने का कोशिस करूँगा।
इस आर्टिकल में मैं आपको पशुपति व्रत से जुडी छोटी से छोटी जानकारी जैसे की पशुपति व्रत की विधि, पशुपति व्रत की सामग्री आदि सभी प्रकार के सवालों का जवाब दूंगा।
नमस्कार मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आज का यह लेख पशुपति व्रत कैसे करें / pashupati vrat ki vidhi बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भगवान भोलेनाथ से संबंधित है। इसलिए लेख को शुरू करने से पहले आप सभी से विनम्र निवेदन है कि सच्चे मन से भोलेनाथ का स्मरण करें और कमेंट में ‘हर हर महादेव’ अवश्य लिखें।
मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि वे आप सभी के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहे और आपकी सभी मनोकामनाएं श्री भोलेनाथ शिव शंकर महादेव पूर्ण करें जो चले महादेव का नाम लेते हुए इसलिए का आरंभ करते हैं।
पशुपति व्रत कैसे करें – (Pashupati vrat kaise Kiya jata hai)
हम सभी जानते हैं कि भोलेनाथ भगवान शिवजी संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-धर्ता है और इन के अनेकों रूप है। जिन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है उन्हीं नामों व अवतारों में से शिव जी का एक और नाम है जिन्हें हम सभी पशुपतिनाथ जी के नाम से जानते हैं। पशुपति का शाब्दिक अर्थ, संपूर्ण संसार के प्राणियों के पति व ईश्वर अर्थात् “शिव“। भगवान श्री पशुपतिनाथ जी को संपूर्ण ब्रह्मांड में पाए जाने वाले समस्त जीवो का पिता मालिक माना जाता है इन्हें हम अन्य शब्दों में जीवन का देवता भी कहते हैं।
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भगवान श्री पशुपति नाथ जी का नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 3 किलोमीटर उत्तर पश्चिम दिशा में बागमती नदी के किनारे एक छोटे से गांव देवपाटन में एक प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। जिसका निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था। पशुपतिनाथ मंदिर में चार मुख वाले शिव लिंग विराजमान है जिनकी पूजा आराधना सदियों से होती चली आ रही है। शिवपुराण में वर्णित पशुपतिनाथ का व्रत जगतपिता महादेव के इसी स्वरूप को समर्पित है।
pashupati vrat ki vidhi- पशुपति व्रत की विधि प्रदीप मिश्रा
धर्म संबद्धता (religion) | सनातन हिन्दू धर्म |
Location | Nepal, Kathmandu |
Architecture type | Pagoda |
Festival | महाशिव रात्रि व तीज़ |
Website | Visit |
पशुपति व्रत की विधि प्रदीप मिश्रा (pashupati vrat ki vidhi): आज के इस लेख में जो भी बातें मैंने आपके साथ साझा की हैं वह सभी शिव पुराण में वर्णित पशुपति नाथ की व्रत कथा और महान कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जीके श्री मुख से प्राप्त जानकारी के अनुसार साझा की है।
अतः आपसे निवेदन है कि यदि आप पशुपति व्रत विधि व कथा आदि के बारे में जानना चाहते हैं तो पशुपति व्रत कैसे करें (pashupati vrat ki vidhi) का यह लेख पूरा अवश्य पढ़ें।
Pashupati Vrat katha – भगवान पशुपति नाथ की कथा
पशुपति व्रत की विधि प्रदीप मिश्रा (Pashupati vrat vidhi): भगवान श्री पशुपतिनाथ जी की कथा शुरू करने से पहले मैं आप सभी श्रोता ग्रहण और पाठकों से निवेदन करता हूं की, चावल के कुछ दाने अक्षत अपने हाथों में ले लीजिए तथा आपके साथ अन्य जितने भी व्यक्ति इस कथा को सुन रहे हैं उन्हें भी चावल के कुछ दाने अक्षत के रूप में हाथ में लेकर बैठ जाने को कहें। और जब कथा समाप्त हो जाए तो इस अक्षत को भगवान श्री भोलेनाथ जी के मंदिर में अर्पित कर दें चलिए कथा का आरंभ करते हैं।
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एकबार भगवान शिव जी नेपाल की सुंदर तपोभूमि से आकर्षित होकर कैलाश स्थान छोड़कर नेपाल में आकर अपनी योगसाधना में लीन हो गए। दूसरी तरफ जब कैलाश पर भगवान शिव जी की अनुपस्थिति का आभास हुआ तो सभी देवता गण बहुत चिंतित हुए और भगवान शिव जी को हर जगह खोजने लगे। भगवान शिव जी को नेपाल की भूमि व वातावरण इतना ज्यादा रम गई कि दुबारा कैलाश वापस जाने का विचार नहीं हुआ। भगवान शिव जी जिस क्षेत्र में योग साधना कर रहे थे वह इतना अधिक सुंदर और मनमोहक था कि वह किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता।
पशुपति व्रत की विधि प्रदीप मिश्रा (Pashupati vrat vidhi): इधर भगवान श्री विष्णु ब्रह्मा जी और अन्य देवता प्रभु शिव जी को खोजते हुए इस सुंदर क्षेत्र में पहुंचे और वहां उन्हें एक देदीप्यमान मन मोहक मृग को विचरण करते हुए देखा जिसके तीन सींग थे। वो मृग कोई और नहीं साक्षात् शिव जी थे जो देवताओं को अपनी ओर आता देख मनमोहक मृग का रूप लेकर इधर उधर विचरण कर रहे थे।
ब्रह्मा जी को शिव जी को पहचानते देर नहीं लगी और जैसे ही ब्रह्मा जी मृग की तरफ अपने कदम बढ़ाते है मृग उतनी ही दूर चला जा रहा था। ऐसे में ब्रह्मा जी ने तत्काल मृग को पकड़ने के लिए उसके एक सींग को अपने हाथो से पकड़ने कि कोशिश की, इतने में मृग बड़ी ही तीव्र गति से नदी के उस पार छलांग लगता है जिससे उसका एक सींग टूट कर 3 टुकड़ों में बट जाता है। और एक टुकड़ा इस पवित्र धरा पर गिरता है जिससे वहां पर एक महारुद्र उत्पन्न हो जाते है। जो श्री पशुपतिनाथ भगवान के नाम से विख्यात हुए।
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भगवान शिव जी की इच्छानुसार विष्णु भगवान उन्हें नागपती नामक उचे टीले पर मुक्ति दिला कर 4 मुख शिव लिंग के रूप में स्थापना की जिन्हें आज हम सभी पशुपतिनाथ भगवान के नाम से पूजते है। और इस भूमि को पशुपति क्षेत्र या मृगस्थली के नाम से जाना जाने लगा।
Pashupati vrat ki Samagri – पशुपति व्रत उद्यापन सामग्री
पशुपति व्रत की सामग्री: जैसा कि हम सभी जानते हैं पशुपति नाथ जी का भगवान शिव शंकर के ही स्वरूप हैं अतः पशुपति नाथ जी के पूजा में उन सभी सामग्रियों को सम्मिलित किया जाएगा जो भगवान शिव शंकर जी को अर्पित किया जाता है।
पशुपति व्रत की सामग्री: लेकिन इसके साथ ही एक मुख्य नियम है की जो भी सामग्री का उपयोग पशुपति नाथ जी की पूजा करते समय सुबह के वक्त प्रयोग में लाया गया था, उनमें से बचे हुए का ही प्रयोग संध्या पूजा के समय ही किया जाएगा। संध्या में पूजा करते समय पूजा की थाली में अन्य सामग्री वनई सामग्रियां सम्मिलित नहीं की जाती। सुबह की बची हुई सामग्रियों से ही पशुपति नाथ जी की पूजा अर्चना की जाती है।
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पशुपति व्रत की पूजन सामग्री: चलिए जान लेते हैं की भगवान शिव शंकर को पूजा (pashupati vrat ki vidhi) में कौन से सामग्रियां अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं। नीचे मैंने कुछ सामग्रियों की एक सूची आपके साथ साझा की है उन सभी सामग्रियों में से आप अपनी यथाशक्ति जो भी संभव हो उसकी व्यवस्था करके पशुपति नाथ जी की पूजा कर सकते हैं।
पशुपति व्रत की पूजन सामग्री: भगवान शिव शंकर जी को भोलेनाथ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि प्रभु इतने भोले हैं कि वह अपने भक्तों की श्रद्धा भाव से की गई पूजा कोई शिकार करते हैं। यदि आप एक लोटा जल और उसमें तुलसी बेलपत्र भी लेकर भगवान शिव शंकर को अर्पित कर देते हैं तो भी आपको उतना ही फल मिलेगा जितना अन्य सामग्रियों के साथ पूजा अर्चना करने से। बस आप का भाव निर्मल होना चाहिए पवित्र होना चाहिए।
पशुपति व्रत की सामग्री (Pashupati vrat vidhi, Katha, Puja Samagri)
- थाली
- लोटा
- गंगा जल
- लाल पीली अथवा सफेद चंदन
- रोरी
- कलावा
- सुगंधित पुष्प, बेलपत्र, धतूरा
- गुलाल, अबीर
- भांग
- अक्षत
- धूप
- दीप
- गौ दूध
- दही, शक्कर, शहद से निर्मित पंचामृत
- मिठाई
संध्या पूजन पशुपति व्रत की सामग्री में छः दीप, मिठाई भोग लगाने हेतु, पुष्प इत्यादि।
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Pashupati Vrat kaise karen | पशुपति व्रत कैसे करें?
पशुपति व्रत कैसे / Pashupati vrat vidhi kaise karen, इस संबंध में शिवपुराण में व्यवस्थित विधि और नियम वर्णन है जिसके बारे में पंडित प्रदीप मिश्रा जी अपने कथाओं में वर्णन करते है। उन नियम और विधि के बारे में आगे हम जानेंगे। किन्तु हम यह समझ लेते है कि Pashupati vrat vidhi / पशुपति व्रत कैसे करें और कब करे!
यदि कोई व्यक्ति पशुपति व्रत / pashupati vrat ki vidhi pujan करना चाहता है तो उसे संबंधित नियमो का पालन करते हुए शिव मंदिर में पूजा पाठ करना अनिवार्य होता है और इस प्रकार व्यक्ति को कुल 5 सोमवार पशुपतिनाथ जी का व्रत व पूजा करना होता है। जिसके पश्चात उसको पशुपति व्रत का लाभ प्राप्त होता है। तो आइए जानते है कि पशुपति व्रत करते समय हमे पूजा किस प्रकार और कब करना चाहिए।
सुबह की पूजा कैसे करें?
पशुपति व्रत व पूजा (Pashupati vrat vidhi) आदि आपको प्रथम सोमवार के सुबह से ही प्रारम्भ करना होता है।
पूजा प्रारंभ करने से पूर्व आपको सूर्योदय के पूर्व ही उठ स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने किसी नजदीकी शिव मंदिर का चयन करना है जहा आपको किसी भी प्रकार की आने जाने सम्बन्धी समस्या न हो। क्योंकि आने वाले पांच सोमवार आपको उसी मंदिर में ही पूजा पाठ संपन्न करना है।
मंदिर जाने के पूर्व अपनी पूजा की थाली को ऊपर बताए गए सामग्री से अपनी यथाशक्ति अनुसार सजा ले।
पशुपति व्रत संध्या पूजा विधि – Evening Pashupati vrat vidhi
सुबह के पूजा के पश्चात संध्या के प्रदोष काल में दूसरी पूजा / Pashupati vrat vidhi करने का प्रावधान है। संध्या के पूजा के समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है जैसे कि सुबह में बचे हुए पूजन सामग्री का उपयोग संध्या के समय भी किया जाना चाहिए।
इसके साथ सुबह के पूजा में प्रयोग किए गए थाल में एक लोटा जल तथा 6 गाय के घी के दिए के साथ भोग लगाने के लिए कोई मीठा व्यंजन प्रसाद के रूप में रख ले।
आप चाहे तो प्रसाद में प्रयोग किए जाने वाला व्यंजन स्वयं घर पर ही बना सकते हैं किंतु ध्यान रहे बने हुए प्रसाद का थोड़ा सा भी भाग घर में नहीं बचना चाहिए। प्रसाद के साथ तीन पेपर प्लेट भी अपने साथ रख ले।
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सर्व्रथम मंदिर में प्रवेश करते ही ओम नमः शिवाय बोलते हुए जय कारा लगाएं और शिवलिंग पर जल समर्पित करें यदि मंदिर में पुष्प भवन जल समर्पित करने की मनाही है तो पुष्पों से जल की छिटें शिवलिंग पर अर्पित करें और शेष बचे सामग्री से शिव जी का सिंगार करें।
अब आपको घी के छः दीए जलाकर शिवलिंग के सामने रखें और साथ लाए प्रसाद को 3 बराबर भागों में बांट दें दो हिस्सों को शिवजी के समक्ष अर्पित कर दें और शेष एक को अपने साथ थाली में निकल घर वापस चले आए। साथ ही आपको एक दीपक भी लेकर घर आना है।
घर लाए दीपक को अपने घर के मुख्य द्वार के दाहिने तरफ रख के अपनी इच्छा प्रकट करते हुए मनोकामना मांगे और घर लाए प्रसाद को स्वयं ग्रहण करे किसी अन्य को न दे।
ठीक इसी प्रकार आपको 5 सोमवार पूजा करनी है।
पशुपति व्रत उद्यापन विधि व नियम
पंडित प्रदीप मिश्रा जी के अनुसार पशुपति व्रत के लिए जो पांचवा सोमवार होता है वही पशुपति व्रत उद्यापन का भी दिन होता है। जिस प्रकार से आपने 5 सोमवार पूजा व्रत किया ठीक उसी प्रकार इस दिन भी आपको पूजा व्रत करना है। Pashupati vrat vidhi में कुछ विशेष बातों का आपको ध्यान देने की आवश्यकता पड़ेगी जो नीचे बताए गए हैं
पांचवे सोमवार व्रत, पूजा, विधि, सामग्री (5th Somvar Pashupati vrat vidhi, Katha, Puja Samagri)
पांचवी सोमवार व्रत पूजा विधि (Pashupati vrat vidhi) के लिए कुछ विशेष सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती है जो निम्न है, जैसे एक पानी वाला श्रीफल जिसे नारियल कहा जाता है। पशुपति नाथ जी को समर्पित करने के लिए 108 पुष्प जो एक ही तरह के होने चाहिए या 108 बेलपत्र या फिर अक्षत या मखाने या फिर हरा मूंग के दाने यह भी 108 की संख्या में होने चाहिए। और एक लाल रंग का कलावा।
पांचवे सोमवार कि पूजा विधि में किन बातों का रखें विशेष ध्यान
पांचवे सोमवार की पूजा (Pashupati vrat vidhi) प्रारंभ करने से पूर्व श्रीफल अर्थात नारियल पर 7 से 5 बार कलावा लपेट दें और शिव जी को 108 पूजा की सामग्री बेल या पुष्पा अथवा मखाना के दाने या फिर अक्षत के 108 दाने शिवलिंग पर समर्पित करें।
108 पूजा सामग्री अर्पित करने के बाद जल प्रसाद और घी के छह दिए शिवलिंग के सामने रख दे और शिव जी को प्रसाद ग्रहण करने के लिए कहे और भोग लगाए।
आरती करने का सही तरीका और इन बातों का रखें विशेष ध्यान
भोग लगाने के बाद शिव जी की पूजा अर्चना करे और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आशीर्वाद मांगे व पूजा व्रत में हुए त्रुटि के लिए क्षमा मांगते हुए और ओम नमः शिवाय कहते हुए स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत तोड़े। इस प्रकार आपकी पशुपतिनाथ व्रत संपन्न होती है।
FAQs:
पशुपति व्रत में क्या खाएं?
पशुपति व्रत के समय एक दिन पूर्व से ही आपको सात्विक भोजन ग्रहण करना है। और व्रत के दौरान फल, कल मूंद और दूध का सेवन करे।
पशुपति व्रत कब करना चाहिए?
पशुपति व्रत आप सोमवार से प्रारम्भ कर सकते है और आने वाले प्रत्येक पांच सोमवार को पशुपति व्रत (Pashupati vrat vidhi) करना होता है।
पशुपति व्रत कितने सोमवार करना चाहिए?
पशुपति व्रत सोमवार को किया जाता है और कुल पांच सोमवार को व्रत पूजा कि जाति है और शिव जी का नाम जप किया जा है।
मासिक धर्म में पशुपति व्रत कैसे करें?
मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को पशुपति व्रत (Pashupati vrat vidhi) का पालन पूरे दिन कर सकती हैं जिसमें वह सात्विक भोजन ग्रहण करें और फल कल मूंद दूध दही आदि का सेवन करें किंतु इस दिन आपको शिवजी की पूजा नहीं करनी है। क्योंकि आपने पूरे दिन व्रत का पालन किया है भले ही आप ने शिवजी की पूजा नहीं की है तब भी आपको पशुपति व्रत का पुण्य लाभ प्राप्त होगा।
पशुपति व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?
पशुपति व्रत के दौरान व्यक्ति को तामसिक भोजन व अन्य मांसाहारी भोजन नहीं करनी चाहिए पशुपति व्रत के दौरान आपको केवल सात्विक भोजन जैसे फल दूध आदि का ही सेवन करना होता है।
पशुपति व्रत में क्या नहीं करना चाहिए?
पशुपति व्रत में (Pashupati vrat vidhi) पशुपति व्रत के दौरान व्यक्ति को अपने सभी गंदे विकारों को जागते हुए गुण पूर्ण स्वच्छ मनसे व सात्विक मन से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पशुपति नाथ जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
पशुपति व्रत में अगर कोई गलती हो जाए तो क्या करें?
पशुपति व्रत के दौरान अगर किसी से या व्रत करने वाले व्यक्ति से किसी भी प्रकार की गलती अथवा त्रुटि हो जाती है तो पशुपतिनाथ जी से अर्थात शिवजी से क्षमा याचना करते हुए अपना व्रत पूर्ण करना चाहिए।
पशुपति व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं?
व्रत के दौरान (Pashupati vrat vidhi) सनातन धर्म में नमक खाना वर्जित है किंतु इसके स्थान पर आप सेंधा नमक गंधर्व पत्थर का सेवन कर सकते है।
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