Baidyanath Jyotirlinga: बाबा बैद्यनाथ से जुड़ी रहस्य

Baidyanath Jyotirlinga: बाबा बैद्यनाथ से जुड़ी हर एक कहानी जानने के लिए आप सही जगह पर आए हैं। आज हम बाबा बैद्यनाथ से जुड़ी हर जानकारी आपको देंगे। बाबा बैद्यनाथ ( Baba baidyanath Dham ) ने देवघर की भूमि ही क्यों चुने। आखिरकार कैसे हुई बाबा बैद्यनाथ की स्थापना। इन सारी को आज हम खुलकर बात करेंगे। और इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको पूरी जानकारी देने की कोशिश करेंगे।

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बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है वैघनाथ ज्योतिर्लिंगBaidyanath Jyotirlinga

Baba Baidyanath Jyotirlinga
Baba Baidyanath Jyotirlinga

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Baidyanath Jyotirlinga: वैसे तो भगवान शिव के अनेक नाम है। जिनमे से कुछ को नाथ तो कुछ को ज्योतिर्लिंग कहते है। उन्ही 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है वैघनाथ ज्योतिर्लिंग। इन्हे कामनालिंग भी कहतें हैं। वैघनाथ से पहले इनका नाम कामनालिंग ही था।

Baidyanath Jyotirlinga: महाकाल का सबसे बड़ा भक्त महाब्राह्मण रावण

Baidyanath Jyotirlinga: रावण विश्व़श्रवा मुनि का सबसे बड़ा पुत्र था। और रावण बहुत ही बड़ा और वीर बलवान था। और भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। साथ ही रावण को महा ज्ञानी पंडित माना जाता था। कहा जाता है की इस पुरे ब्रह्माण्ड में कोई सबसे बड़ा और सबसे ज्ञानी ब्राह्मण हुआ तो वो था रावण। ऐसे ही नहीं उसने शनिदेव जिनके आँखों के प्राक्प से पत्थर भी पिघल जाता था उन्हें भी उसने बंधी बना लिया था।

कहा जाता है की त्रेता युग में भगवान शिव एवं उनके ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ को भक्त दशानंद रावण था। ऐसा इसलिए क्योंकि रावण ने घोर तपस्या करके महाकाल को प्रशन्न किया था और उनसे आग्रह किया की आप मेरे साथ लंका चलिए। तो महादेव उससे बोले की भक्त मैं तुम्हारे साथ तो चलूँगा लेकिन उससे पहले तुम्हे मेरे इस शिवलिंग को लंका ले जा कर स्थापित करना होगा। लेकिन ध्यान रहे पुरे रस्ते में कहीं भी तुम्हे इसे रखना नहीं है। लेकिन मल-मूत्र के कारन रावण ने महादेव के शिवलिंग को देओघर में रख दिया और फिर उन्हें वह से उठा नहीं पाया।

महाकाल (baba baidyanath) को खुश करने के लिए भक्त महाब्राह्मण रावण ने 9 सर समर्पित कर दिए

एक बार की बात है महा पंडित रावण ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए घनघोर तप करने लगा। इस घनघोर तप से पुरे के पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गए। सभी देवता लोग घबरा गए और त्राहि माम त्राहि माम करने लग। लेकिन भगवान इस धर्मभोर तप के बाद भी जब महा पंडित रावण के सामने नहीं आए तब रावण ने एक-एक करके अपने मस्तको को फूल की तरह भगवान भोले नाथ को समर्पित करने लगा।

रावण ने एक एक कर अपने 9 सिर को काट कर भगवान शिव को समर्पित कर दिया। और जब रावण अपने १०वें सिर काट कर भगवान को चढ़ाने ही बाला था तब जाके भगवान शिव ने रावण के सामने प्रकट होकर रावण के सारे सिर को फिर से जोड़ दिए और बोले रावण तुम्हे क्या चाहिए? तब रावण ने भोले बाबा को अपने राजधानी लंका आने की बात कही। भगवान बोले त्थास्तु यहीं से शुरू हुई वैघनाथ‌ की कहानी।

Baba Baidyanath: लंका जाने के लिए शिवजी ने रखा था शर्त

Baba Baidyanath: रावण के घन घोर तपस्या से खुश प्रभु ने आशीर्वाद स्वरुप उसे अपने लिंग को ले जाने की आज्ञा दे दी। लेकिन एक शर्त रख दी की तुम्हे बस एक बात का ख्याल रखनी है। जब तब तुम अपने घर लंका नहीं पहुंच जाते तब तक इसे अपने हाथ से नीचे नहीं रखनी है। नहीं तो मैं वहा से नहीं उठूंगा। तब रावण बोला ठीक है प्रभु, लेकिन रावण ने एक गलती कर दी।

Baidyanath Jyotirlinga: उसने जीस ज्योतिर्लिंग को चुना उसे मां पार्वती पूजा करती थी। और रावण के चुने उस ज्योतिर्लिंग मां पार्वती गुस्सा हो गई। और गुस्से में मां पारवती ने मां गंगा को रावण के पेट में समाहित होने को कहा। तब जाके मां गंगा रावण के पेट में समाहित हो गई। जिससे रावण ो जोर की प्रसव लग गयी और उसे वो नहीं रोका गया। और ऐसे हुई बाबा बैद्यनाथ की स्थापना।

रावण लेके चला शिव लिंग को लंकाBaba Baidyanath Dham

Baba Baidyanath Dham: जब रावण शिव लिंग ले कर के हिमालय से चलो तो कथा अनुसार मां गंगा पेट में होने के करन उसे लघुसंका लग गई। और लघुसनका लगने से रावण बेयाकुल हो गया। और सोचने लगा कि अगर मैं भगवान शिव को रखा देता हु, तो कहे अनुसार बात सच होगयी तो उसका किया गया सारा तप व्यर्थ चला जायेगा।

लेकिन लघुसनका से बयाकुल रावण सोचने लगा। और इधर उधर ढेखने लगा तब जाके देखा कि दूर में एक ग्वाला अपनी गाये चारा रहा था। तब रावण सोचा की उस ग्वाले को शिव लिंग थमा कर मैं अपनी लघुसंका कर लूंगा। और फिर भगवान शिव लिंग को लेकर चलूंगा। और उसने ऐसा ही किया।

रावण को रोकने के लिए भगवान विष्णु जी ने ग्वाले का लिया भेसBaba Baidyanath Dham

रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर महाकाल ने रावण को शिव लिंग ले जाने को कहा। आज्ञा पाकर रावण खुशी खुशी शिव लिंग ले कर चला। लेकिन सभी देवताओं में हहाकार मच गया। तब भगवन श्री विष्णु जी ने रावण को रोकने के लिए ग्वाले का भेस बदल कर रावण के रास्ते में आ गए।

और जैसे ही रावण श्री हरी के हाथों में शिव लिंग देकर लघुसनका के लिऐ गया तो तुरंत भगवान श्री हरी भी शिव लिंग को रख कर चल दिए। जब रावण आ कर देखा की शिव लिंग तो नीचे स्थापित था। तो गुस्से में लाल होकर रावण चिल्लाया और उठाने की कोशिश करने लगा। लेकिन शिव लिंग नही हिलने से रावण दुखी हो गया। और उसी दिन से वहा भगवान बैद्यनाथ को की वैजुनाथ भी कहते है की स्थापना हुई

क्रोधित रावण ने बनाया शिव लिंग पे अंगूठे से निशानBaba Baidyanath Dham

रावण के नाकाम कोशिश करने के बाद भी शिवलिंग के नहीं उठने के कारण रावण बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो उठा। और गुस्से में आकर उसने शिवलिंग को अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से निचे की ओर दबा दिया। और उससे वह शिवलिंग जमीन में धस गया और निराश होकर रावण वहां से चला गया।

Baidyanath Jyotirlinga: वैघनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापना करने वाले हैं श्री हरि

Baidyanath Jyotirlinga: रावण से शिवलिंग नहीं उठने के कारण रावण जब कोधित हो कर शिव लिंग को अंगूठे से जमीन के नीचे कर दिया तो बाद में भगवान श्री हरी ने उस शिव लिंग को बढ़िया से पूजा और पाठ कर स्थापना कर दिए। और उसी दिन से उस ज्योतिर्लिंग को एक और नाम से जाना जाने लगा माघेश्वरलिंग। भगवान विष्णु जी के द्वारा की गयी स्थापना की वजह से उनका ये नाम पड़ा।


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