आखिर क्यों माता तुलसी ने भगवान विष्णु को दिया था श्राप, जानें तुलसी विवाह की कहानी

तुलसी विवाह की कहानी आप सभी लोगों को पता ही होगा की मां तुलसी का हमारे हिंदू और सनातन धर्म में कितना महत्व माना जाता है और रखा जाता है तुलसी विवाह की कहानी क्या है और तुलसी मां के पूजा करने के फल और मैन तुलसी के क्या-क्या गुण है इन सभी बातों पर विशेष कर चर्चा होगी

लेकिन यह सब बात जानने से पहले आप लोगों में बताना चाहता हूं कि आखिर तुलसी मां थे कौन और किन से उनकी विवाह हुई और क्यों तुलसी विवाह की कहानी इतना हर हिंदू और सुनने के जुबानी पर रहता है तुलसी हिंदू धर्म का एक पवित्र पौधा माना गया है

तुलसी विवाह का इतिहास क्या है?

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तुलसी विवाह की कहानी जानने से पहले आप लोगों को पता होना चाहिए की मां तुलसी का विवाह किस हुआ था तो चलिए जानते हैं बहुत ही प्राचीन समय में सतयुग में समुद्र मंथन से प्रकट हुए मां लक्ष्मी और उसके कुछ दिन बाद प्रकट या कहे तो जन्म लिए रक्षा राज्य जालंधर जो कि वह भी समुद्र से ही जन्म लिए थे

इसलिए मां लक्ष्मी को अपने बहन के रूप में मानते थे और इसी का फायदा उठाते हुए जालंधर बहुत ही अधिक पापी और अधर्मी होता चला गया क्योंकि उसे पता था कि जब मैं भगवान का ही साल लगता हूं तो भला इस संसार में हमारा कौन क्या बिगाड़ सकता है

और जब भी जालंधर पर किसी तरह की विपत्ति है कष्ट आ जाती थी तो तुरंत मां लक्ष्मी उसके कष्ट को निवारण के लिए या तो श्री हरि विष्णु से प्रार्थना करती थी आया स्वयं उसका निदान कर देती थी इसी का फायदा उठाते हुए राक्षस राज जालंधर और भी अधिक क्रूर अधर्मी और पापी होता गया

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राक्षस राज जालंधर के कर से स्वयं त्रिदेव भी नहीं बच पाए थे

राक्षस राज जालंधर का कर इतना हो गया था कि उसे स्वयं त्रिदेव भी बस नहीं पाए थे कहां जाता है कि जालंधर बहुत ही अधिक शक्तिशाली और समुद्र का पुत्र होने के कारण बहुत ही अधिक बलवान था और मां लक्ष्मी का भाई होने के कारण उसे कभी भी धन संपत्ति की कमी उसके जीवन में नहीं होती थी

इसी को देखते हुए रक्षा जालंधर ने भगवान भोलेनाथ और ब्रह्मा जी को भी तंग करने लगा और उसके प्रकोप से भगवान भी वंचित नहीं रह पाए इसी को देखते हुए श्री हरि ने एक योजना बनाई जालंधर वध तो चलिए जानते हैं आगे की कहानी और तुलसी विवाह की कहानी

मां तुलसी बहुत ही पवित्र और सती और पतिव्रता स्त्री थी

मां तुलसी बहुत ही पवित्र और सती सावित्री और पतिव्रता स्त्री थी चलते भगवान को भी जालंधर का वध करने में असमंजस हो रहा था क्योंकि मैन तुलसी भगवान श्री हरि विष्णु के बहुत ही बड़े भक्त थे और जब भी भगवान जालंधर का वध करने के लिए जाते।

तब मैन तुलसी का पतिव्रता उन्हें रोक देता इसी को देखते हुए भगवान ने पहले मैन तुलसी से कहने की बात सोचे लेकिन उसमें भी समर्थ थे भगवान श्री हरि विष्णु

मां तुलसी की हुई पतिव्रता भंग

जालंधर वध के लिए सबसे पहले मैन तुलसी का पतिव्रता भंग करना था इसी के चलते भगवान श्री हरि विष्णु ने अपना भेष बदलकर जालंधर का भेष धर लिया और मैन तुलसी से संबंध बनाने के लिए चल पड़े और संबंध बना भी लिया संबंध बनाने के बाद मैन तुलसी ने उसे उन्हें परख लिया और बोला आप कौन है

तब भगवान अपना सर नीचे करके बोल कि हमें मजबूरन ऐसा करना पड़ा क्योंकि तुम्हारे पति जालंधर का प्रकोप और कुर्ता और पाप इस संसार में बहुत ही अधिक बढ़ता जा रहा था। इसी के चलते मुझे आपके साथ ये करना पड़ा पतिव्रता भंग होने के बाद तुरंत ही जालंधर का वध कर दिया गया और भगवान श्री हरि विष्णु जी मां तुलसी के आगे नतमस्तक हुए और बोले तुम्हें जो भी वरदान चाहिए बोलो पर मजबूरन मुझे ये करना पड़ा

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वरदान में क्या मांगे मां तुलसी

वरदान में क्या मांगे मां तुलसी इसका हमारे धार्मिक पुराणों में दो तरह का उल्लेख है और हमारे समाज में भी इसका दो तरह को दर्शाया गया है तो चलिए हम जानते हैं आज वह दोनों बात। पहली बात में ए आता है कि वरदान में क्या मंगा मैन तुलसी। हमारे धार्मिक पुराने के अनुसार मैन तुलसी ने भगवान श्री हरि के सर पर रहने का वरदान मांगा।

और भगवान श्री हरि ने उन्हें यह वरदान दे भी दिए। इसी के चलते आज जहां कहीं भी भगवान श्री हरि या कोई भी पूजा तुलसी पत्र की बहुत ही विशेष महत्व को दर्शाया गया है। और अपने पूजा में तुलसी पत्र को अवश्य शामिल करें।

और जी प्रसाद से भगवान या ठाकुर जी को भोग लगे उसे प्रसाद में भी तुलसी का पत्ता आवास डाल दे जहां भी ठाकुर जी की पूजा होती है वहां पर तुलसी मां का पत्ता उनके सर पर चढ़ाया जाता है

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माता तुलसी को मिला था वरदान

वरदान स्वरुप दूसरा वाक्य यह आता है कि वरदान में मैन तुलसी में भगवान श्री हरि से शादी करने का प्रस्ताव रखा और और यह प्रस्ताव श्री हरि ने मैन तुलसी का सती प्रथा और पतिव्रता को देखते हुए स्वीकार भी कर लिया उसी दिन से हम लोग और हमारे ग्रंथो में यह कहा गया है तुलसी विवाह की कहानी तो आज आप लोग को पता चल ही गया होगा इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी।

अपने घर में भी पूजा करे तो आपने जो भोग लगाया है और पर शादी चढ़ाया है उसमें एक या दो पत्ते तुलसी का डाल दे इससे आपका भोग तुरंत ही भगवान के पास चला जाता है लेकिन रविवार के दिन कभी भी तुलसी के पेड़ से पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए तो प्रेम से बोलिए श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय

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