कूर्मपुराण से जुड़ी संपूर्ण जानकारी हिंदू और सनातन धर्म में वेद और पुराणों का क्या महत्व दिया जाता है आप सभी भली-भांति जानते हैं हमारे सनातन धर्म के सभी भाई एवं बहन को यह पता होना चाहिए की सबसे पहले वेद को महत्व दिया जाता है।
उसके बाद पुराने को और इन सब के निचोड़ को निकालने वाले उपनिषद को भी उतना ही महत्व दिया जाता है तो आज हम बात कर रहे हैं कूर्मपुराण से जुड़ी जानकारी के बारे में तो चलिए जानते हैं कि आखिर कूर्म पुराण किन के आधार पर लिखा गया पुराण है यह कुर्मा कौन हैं।
कूर्म पुराण में कितने अध्याय और श्लोक पाए जाते हैं कूर्म पुराण हमारे जीवन में जीने के लिए कौन सी बात को सीखना है ऐसे बहुत से जानकारी जो कूर्म पुराण में छिपी हुई है वह आज हम आपको बदलने जा रहे हैं तो कृपया कर के आप इस पूरे आर्टिकल को ध्यानपूर्वक पढ़िएगा
कर्म यानी कछुआ भगवान श्री हरि का ही एक अवतार है जिसे अलग-अलग खंड या कहे तो अलग-अलग उपनिषद ग्रंथ में इसका वर्णन अलग-अलग है इनके अवतार का वर्णन अलग-अलग है लेकिन अधिकतर पुराणों में लिखा गया कि समुद्र मंथन के टाइम ही भगवान श्री हरि विष्णु ने मंदार पर्वत उठाने के लिए इस अवतार को धारण किया थे।
कुर्मा का अर्थ क्या है।।।
कुर्मा का अर्थ क्या होता है कुर्मा का अर्थ क्या होता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने अपने दूसरे अवतार में कछुआ का रूप धर के यह अवतार लिए थे उसी के कारण इस अवतार को कूर्म अवतार कहा जाता है भगवान श्री हरि विष्णु के कुल 10 अवतार है उनमें से कूर्म अवतार का स्थान दूसरा माना जाता है।
श्री हरि विष्णु ने वैशाख पूर्णिमा के दिन कूर्म अवतार लिए थे इसमें उन्होंने अपने आप को पूर्ण रूप से छुए के रूप में बदल लिए थे उसी दिन से इस अवतार को कुमार अवतार कहा जाता है क्योंकि संस्कृत में कुर्मा का अर्थ होता है कि कक्षप जिसे कछुआ भी कहते हैं।
कूर्म भगवान श्री हरि विष्णु को क्यों लेना पड़ा।
कूर्म अवतार भगवान श्री हरि विष्णु को क्यों लेना पड़ा यह बात सत युग की है जब देवता और दानव आपस में लड़ा करते थे तब भगवान श्री और विष्णु ने कहा कि आप लोग मिलकर समुद्र मंथन कीजिए जिससे आप लोगों को अमृत की प्राप्ति होगी इस बात को सुनकर देवता और दानव दोनों ही राजी हो गए।
और समुद्र मंथन स्टार्ट हुआ जिसके लिए मथनी की आवश्यकता थी मंथली की आवश्यकता मंदार पर्वत ने पूर्ण की और मथनी चलाने के लिए रस्सी की आवश्यकता को बासुकी नाग ने पूर्ण किया लेकिन समुद्र के गहराई होने के कारण मंदार पर्वत लगातार डूबता जा रहा था।
तभी भगवान श्री हरि विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया और उसे मंदार पर्वत को अपने कवच या कहे तो पीठ पर उठाकर समुद्र मंथन प्रारंभ करवाई और उसे समुद्र मंथन से अमृत और हलाहल भी सहित मां लक्ष्मी कुल 14 रतन की प्राप्ति हुई इसी में से कुछ रन थे।
जो जैसे की अमृत जिसके लिए देवता और दोनों में मतभेद और लड़ाई शुरू हो गया उसे समय भी भगवान श्री विष्णु को एक नारी का भेष लेकर इस लड़ाई को बंद करवाना पड़ा था भगवान श्री हरि विष्णु जब-जब इस धरती पर पाप बढ़ता है तब तक अवतरित होकर पपियो का नाश करते हैं और इस धरती को पापियों से मुक्त करते हैं।
कुरमा पुराण में कितने अध्याय और श्लोक पाए जाते हैं।
कूर्मपुराण में कितने अध्याय और श्लोक पाए जाते हैं भगवान श्री हरि विष्णु इस अवतार का वर्णन किया जाने वाले पुराण में कुल मिलाकर 17000 से 18000 श्लोक के करीब पाए जाते हैं। और लगभग 300 के करीब अध्याय पाए जाते हैं लेकिन वर्तमान में पूर्ण पुराण का छोटा सा ही अवशेष बचा हुआ है जिसमें कुल मिलाकर 6000 श्लोक और 90 अध्याय पाए जाते हैं।
इस पुराण में पुराणों के पांचो लक्षण पाए जाते हैं जैसे की सर्ग प्रतिसर्ग वंश मन्वंतर और वंशानूचारित यह पांच जो लक्षण है कूर्म पुराण को बहुत ही अलग पुराणों में से एक बनता है बाकी की तुलना में कूर्मपुराण का बहुत बड़ा महत्व दिया गया है।
लेकिन वर्तमान में इस कूर्म पुराण का पूरा अध्याय हम लोग सनातनी भाइयों के पास मौजूद नहीं है जिसे चलते आज के टाइम में हम इस कूर्म पुराण को यही कर सकते हैं कि 6000 श्लोक वाली और 90 अध्याय वाले कूर्मपुराण ही संपूर्ण पुराण है।
कूर्मपुराण में क्या मिलता है।
कूर्म पुराण में क्या मिलता है भगवान श्रीहरिक विष्णु के इस अवतरित होने वाले अवतार पर आधारित यह पुराण में को दो भागों में बांटा गया पूर्वी भाग और उत्तरी भाग 17000 श्लोक और पांच संहिता वाले इस पुराण को बड़ा महत्व दिया गया है कौन पुराण में बताया गया है कि अध्यात्म विवेचन कलीकर्म और सदाचार का वर्णन मिलता है।
इस पुराने बताया गया है। कूर्मपुराण के अध्याय के अनुसार भगवान भोलेनाथ और श्री विष्णु को गले लगाकर यह पुराण शुरू होती है और उसके बाद विष्णु और भगवान शिव को दुनिया और जीवन के बारे में और स्वयं के प्रकृति को समझने के लिए आमंत्रित करते हैं
शिव आत्मा (आत्मा स्वयं) ब्रह्म पुरुष मोक्ष माया योग प्राकृतिक और योग की व्याख्या करते हैं।
अन्नपूर्णों की तुलना में सृष्टि की उत्पत्ति ब्रम्भा जी से हुई इस उत्पत्ति के बाद सभी देवताओं ने शिवकर किए हैं जड़ चेतन स्वरूप में ही जीवन का अंश माना जाता है यह भी इस पुराण में हमें बताती है इस जीवन के अंश को ही ब्रह्मा कंस कहा जाता है।
इस पुराण में मुख्य रूप से भगवान श्री राधे विष्णु और भगवान भोलेनाथ की कथा का वर्णन मिलता है और हमारे जीवन में सभी सदाचार भावनाओं को बनाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं।
जैसे कि मेरु पर्वत की दो कन्याएं थीं उनके नाम से आयती और नियति जिनकी विवाह उत्तर एवं विधाता नामक दो वर से हुआ फिर उन सभी का पुत्र धन की प्राप्ति हुई इस बात की भी संवाद मिलता है स्कूल में पुराण में कूर्मपुराण का कथा पापों को नाश करने की कथा में से एक है।
और यही दर्शाते हैं स्वयं श्री हरि विष्णु ने इस कथा को अपने हैं मुख से सभी को सुने थे इसीलिए कहा जाता है कि कर्मा पुरम का कथा सुनने मौत से या श्रवण मार्च से या पढ़ने मात्र से ही आपके इस धरती पर सभी भोग विलास और किया हुआ पाप कट कर आपको ब्रह्म लोग के प्रति होगी।
कूर्म पुराण के रचना करने वाले कौन हैं।
कूर्म पुराण के रचना करने वाले में हमारे महर्षि वेदव्यास का ही नाम आता है लेकिन इसकी संभावना सबसे पहले श्री हरि विष्णु ने अपने ही मुखारविंद से किए थे लेकिन उनकी रचना का श्री महर्षि वेदव्यास को जाता है जो अपने ही हाथों से भारत में ही बैठकर संस्कृत भाषा में इस पुराण की रचना किए थे।