दशा माता की कथा (Dasha mata ki kahani): चैत्र मास (march-april) के कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता की पूजा अर्चना करने का और दशा माता की कथा कहानी सुनने का अवसर मिलता है। लेकिन यदि कोई स्त्री चाहे तो अन्य दो दशाओं में दशा माता की पूजा कर सकती हैं। जब किसी नवजात शिशु के जन्म की खबर सुने या किसी गाय के बछड़े के जन्म की शुभ खबर सुनकर वो दशा माता की पूजा करना शुरू कर सकते है।
हमारे हिन्दू धर्म में होली के दूसरे दिन से दशा माता की पूजा अर्चना और कथा आदि करने का बहुत ही प्राचीन काल से एक प्रथा चली आ रही हैं। जिसमें हिंदू संप्रदाय के व्यक्ति व महिलाएं लगातार 10 दिन तक कथा कहानी करते और सुनते हैं। इन इन कथाओं में दशा माता की महिमा और उनकी कृपा के बारे में लोगों को सुनाया जाता है।
दशा माता की कथा अथवा दशा माता की कहानी कोई भी सुहागन स्त्री अथवा विधवा स्त्री प्रारम्भ कर सकती है। जो भी स्त्री दशा माता की पूजा प्रारंभ करने की सोच रही हैं तो उन्हें बता दूं इसके कुछ नियम होते हैं जिन्हें आपको ध्यान में रखते हुए अपनी पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। जैसे दशा माता की कथा कहानी व पूजा करने वाली स्त्री को प्रतिदिन सुबह प्रातकाल उठकर स्नानादि करके दशा माता के पूजन की सामग्री लेकर अपनी पूजा प्रारंभ करनी होती है।
सर्वप्रथम महिला को अपने घर के किसी दीवाल पर सात्विक बनाते हुए मेहंदी और कुमकुम से दीवाल पर 10-10 बिंदिया लगाने होते हैं। घर के दीवाल पर कुमकुम और मेहंदी की बिंदिया लगाने के बाद स्वास्तिक के रूप में गणपति जी का फिर से 10 बिंदुओं के रूप में दशा माता जी की चावल सुपारी धूप रोली मोली दीप अगरबत्ती और नैवेद्य से पूजा किया जाता हैं।
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पूजा समाप्ति के पश्चात प्रतिदिन पूजा करने वाली स्त्री को दशा माता की कहानी अथवा दशा माता की कथा कहने और सुनने का विधान है जिस दिन दशा माता की कहानी व कथा पूजा पाठ इत्यादि किया जाता है उस दिन सिर्फ एक समय का ही भोजन करने का विधान होता है अर्थात महिला को पूजा के दिन एक समय खाकर दूसरे समय व्रत करना होता है।
दशा माता की पूजा विधि
दशा माता जी की पूजा व्रत कथा कहानी इत्यादि करने का मुख्य उद्देश्य घर में सुख समृद्धि व परिवार के सभी सदस्यों की दशा स्थिति में सुधार करने के लिए दशा माता की पूजा अर्चना कथा कहानी की जाती है। दशा माता की पूजा की एक विशेष बात यह है की स्त्री को हल्दी के रंग से रंगा हुआ कच्चा सूत जिसमें 10 गाठ लगे होते हैं उसको माता की बेल कहा जाता है।
जिसे दशा माता के पूजन के समय उनके चरणों में अर्पित करके पुनः ले लेते हैं और इसको अपने गले में 10 दिनों तक धारण करके रखते हैं। दसवें दिन पूजा पाठ करने के पश्चात महिला पूरे वर्ष इसे धारण करके रखती हैं और अगले वर्ष इसे उतार कर पूजा करके एक नई बेल जो कि कच्चे धागे की होती है और हल्दी के रंग से रंगा होता है साथ ही इसमें 10 गांठे भी होती हैं उसको धारण करती हैं।
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दशा माता की पूजा विधि और नियम (Dasha Mata puja vidhi) जानने के पश्चात् आइए यह भी जान लेते है कि दस दिन तक को से कथा कहीं और सुनाई जाती है।
दशा माता की कहानी (दशा माता की कथा)
दशा माता की कहानी:
दशा माता की पूजा और व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष को दशमी के दिन किया जाता है, जिसमे व्रत करने वाली महिलाएं दशा माता के नाम की डोरी करती है। डोरी करने के लिए महिलाएं कच्चे सुत के धागे को दस तार करके लपेट कर उनमें दस गांठे बांधती है जिसके पश्चात उस धागे को हल्दी से रंग कर होलिका दहन के दिन आग में दिखा कर उसको पहन करके दशा माता का व्रत पूजा करना शुरू करती है।
इस धागे को प्रतिदिन दशा माता के चरणों में अर्पित करके पुनः पहन लेती है ऐसे कुल दस दिन तक लगातार करती है और आखरी के दसवें दिन धागे की पूजा करके पूरे वर्ष अपने गले में धारण करती है। ऐसा इस लिए किया जाता है ताकि उनके घर की दशा सदैव बनी रहे कभी कोई विपदा न आए उसके लिए ही महिलाएं दशा माता की कथा पूजा करती है।
दशा माता की महिमा हम उनके कथा के अनुसार ही समझ सकते हैं। तो आइए कथा दशा माता की कहानी प्रारम्भ करे। दशा माता की कथा प्रारंभ करने से पूर्व अपने हाथ में गेहूं के दस दाने रख ले। क्योंकि जो भी स्त्री दशा माता का व्रत करती है उन्हें पूजा इत्यादि करने के बाद दशा माता की कुल दस कथाओं को सुनना पड़ता है तभी व्रत सफल हो पाता है।
दशा माता की दस कथाओं को हम एक कहानी के आधार पर जानेंगे जिसमें राजा नल और रानी दमयंती की कहानी है। तो चलिए दशा माता की कथा / दशा माता की कहानी शुरू करते है,
राजा नल और रानी दमयंती की कहानी
किसी राज्य में राजा नल और रानी दमयंती रहा करती थी। राजा नल अपना साम्राज्य बहुत ही शान से और शांति पूर्ण तरीके से चला रहे थे। रानी दमयंती भी बहुत सुख से नल के साथ अपना राजशिक जीवन व्यतीत कर रही थी। उनके राज्य में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी और जनता भी राजा नल और रानी दमयंती से बहुत खुश थे और उनका बहुत सम्मान करते थे।
एक दिन रानी को अपनी किसी दासी से दशा माता की महिमा की जानकारी प्राप्त हुई और उनकी दासी ने रानी दमयंती को दशा माता की महिमा के बखान करते हुए दशा माता की कथा और दशा माता की कहानी सुनाई। रानी दमयंती दशा माता की कथा सुनकर बहुत अधिक प्रभावित होती है और दासी से दशा माता की पूजा व्रत विधि के बारे में पूछती है।
दासी रानी दमयंती को दशा माता की पूजा विधि और व्रत नियम आदि के बारे में पूरी जानकारी दी और उन्हें दशा माता की कथा भी सुनाई और कहा पूजा के पश्चात् आपको प्रतिदिन दशा माता की कहानी को सुनना है तभी आपका पूजा सफल होगा।
अतः रानी दमयंती चैत्र मास की कृष्ण पक्ष के दशमी के दिन दशा माता के नाम से कच्चे सुत का डोरा (दशा माता का बेला) बनाती है और उस डोरे को होलिका दहन के दिन अग्नि दिखा कर अपने गले में धारण करके दशा माता की पूजा प्रारम्भ करती है और प्रतिदिन दशा माता की कथा सुनती और अन्य दासियों को भी दशा माता की कहानी सुनाती।
चूंकि रानी दमयंती दशा माता की पूजा करती थी तो उनके गले में कच्चे सूत की डोरी एक दिन राजा नल ने देख ली और उन्होंने महारानी दमयंती के गले से वह कच्चा सुत जो दशा माता का बेला था उसको तोड़ दिया यह कहते हुए की “एक रानी के गले में मात्र हीरे जवाहरात के आभूषण और गहने ही सोभा देते है कोई साधारण सुत का धागा नहीं” ऐसा कहते हुए राजा नल ने रानी के गले से धागा तोड़ दिया।
रानी बहुत दुखी होती है लेकिन वे आने वाली मुसीबत से बिल्कुल अनजान थी। कुछ समय बिता राजा नल की राज व्यवस्था बिगड़ने लगी। दिन प्रतिदिन उनके राज्य की संपत्ति समाप्त होने लगी। इतना ही नहीं धीरे धीरे करके उनकी महल से पत्थर के टुकड़े गिरने लगे राजा नल और रानी दमयंती को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा। अचानक से इतनी ज्यादा मुसीबत कैसे उनके राज्य और राजमहल में टूट पड़ी दोनों यही सोच कर परेशान थे।
राज्य की स्थिति इतनी खराब हो गई की लोग दाने दाने को तरस गए। अंततः राजा ने राज्य त्यागने और दूसरे राज्य में जाकर धन कमाने का निश्चय किया और रानी दमयंती को कुछ दिन के लिए उनके मायके जाने को कहा। किन्तु रानी दमयंती एक पतिव्रता स्त्री थी उनके लिए उनका पति ही सब कुछ था अतः उन्होंने जाने से मना कर दिया। इस तरह से दोनों अपना राज्य त्याग करके दूसरी राज्य की तरफ रवाना होते है।
राजा रानी भूखे प्यासे दूसरी राज्य कि ओर चले जा रहे थे। चलते चलते बहुत समय बीत गया और संध्या भी होने लगी थी तो उन्होने विश्राम के लिए पास के है एक माली के पास गए और उससे रात गुजारने के लिए शरण मांगी। माली का बगीचा बहुत ही सुन्दर और हराभरा था। राजा रानी दोनों माली के सुंदर से बगीचे में पूरी रात विश्राम करते है और सुबह जब उनकी नींद खुलती है तो उन्होंने देखा कि पूरा बगीचा बंजर बन गया है।
उनको समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक ही रात में हराभरा बगीचा बंजर कैसे हो सकता है। तभी वहां माली आ जाता हैं और अपने बंजर बगीचे को देख राजा नल और रानी दमयंती को बहुत खरी खोटी सुनाता है और उन्हें वहां से जाने को कहता है।
अब दोनों सुबह-सुबह फिर से अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ते हैं। आगे जाते जाते उन्हें एक तेलन दिखती है और कड़ी धूप भी थी अतः उन्होंने तेलन से उसके यहां विश्राम करने के लिए शरण मांगी। तेलर ने अपने यहां रुकने के लिए सहमत हो जाती है और उन्हें शरण देदेती है।
तिलन का पूरा घर तेल के डिब्बे से भरा हुआ था लेकिन जब उसने देखा तो उसका पूरा तेल का डिब्बा खाली हो गया था। उसको समझते देर न लगी यह दोनों कोई अभागे हैं अतः उन्हें कोसते हुए जाने को कहती है। वह बहुत गुस्सा थी क्योंकि राजा रानी को अपने यहां आश्रय देकर उसका बहुत नुक़सान हुआ था।
थोड़ी ही दूर जाकर वे एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगते है। तभी राजा को याद आया कि उसकी बहन का घर पास में ही है। अतः राजा ने अपने यहां वृक्ष के नीचे होने की खबर अपनी बहन के घर तक पहुंचाया। राजा की बहन दोनों के लिए रोटी और प्याज के टुकड़े अपने एक सेवक के हाथो उन तक पहुंचाती है। राजा रानी रोटी देख कर उसे खाने के बजाय उसे वहीं जमीन में गाड़ देते है और आगे बढ़ते हैं।
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आगे राजा का मित्र मिलता है और वो उनकी यह दुर्दशा देख अपने घर ले जाता है और खूब आदर करता है तभी उनके घर में एक मोर आता है और वो घर की खूंटी पर लटका हुआ एक स्वर्ण हार निगल लेता है जिसके बारे में किसी को खबर नहीं होती है। तभी राजा के मित्र के पत्नी की नजर खुटी पर पड़ती हैं वहा हार न पाकर अपने पति से कहती है कि कैसे मित्र है तुम्हारे जिन्हें आपने शरण दी उन्ही के घर चोरी कर ली।
इतना सुनते ही राजा का मित्र उसे चुप करते हुए कहता है कि उसका मित्र चोर नहीं है आज उसकी दशा सही नहीं है हो सकता है उसको उस हार की आवश्यकता हो इस लिए उसने हार लिया होगा जिसको वो बाद में हमें लौटा देगा। अपने मित्र और उसके पत्नी की बात राजा नल और रानी दमयंती सुन लेती हैं और दोनों वहा से प्रस्थान करते हैं।
रास्ते में चलते हुए रानी को स्मरण हुआ की ये सब हो न हो दशा माता का व्रत भंग होने के कारण हो रहा और वो राजा से कहती है कि हमारी दशा खराब हो गई है तभी हर कोई हमारा बैरी बन गया है। राजा भी अब तक सब समझ चुका था लेकिन दोनों के पास पछताने के सिवाय कुछ नहीं था। कुछ दिन की यात्रा के बाद वे एक राज्य में पहुंचते है वहां पर राजा रानी काम खोज कर अपना गुज़ारा करने लगते है। ऐसे ही पूरा साल बिता और चैत्र माह नजदीक आता है।
रानी दमयंती दशा माता की कथा पूजा व्रत करने की बात राजा से करती है। राजा भी अपनी पत्नी की पूजा के लिए और अधिक मेहनत करना शुरू करता है।
राजा जंगलों से लकड़ी काटता और उन्हें बाज़ार में बेच कर जो पैसा कमाता उसी से दोनों का गुजारा होता था। चैत्र मास का कृष्ण पक्ष की दशमी नजदीक आ जाती है। राजा अब और लकड़ियां काटता है और उन्हें बेचकर को धन कमाता है उसका वह दशा माता की पूजा सामग्री घर लाकर अपनी रानी दमयंती को देता है।
रानी होलिका के दिन कच्चे सुत का डोरा अर्थात् दशा माता का बेल बनाती हैं और उसे अपने गले में धारण करती हैं। इस तरह रानी दमयंती दशा माता की कथा पूजा व्रत प्रारंभ करती है। अब धीरे धीरे उनकी दशा में सुधार होने लगा था। एक दिन राजा की लकड़ियां चंदन की निकली, जिसको बेचकर वह बहुत धन घर लाता है और पत्नी के साथ दशा माता की कथा पूजा करते है।
ऐसे करके दिन बीतते गए और अब राजा बहुत धनवान हो गया था अतः वह पुनः अपने राज्य वापस चलने का विचार करता है और इस तरह दोनों राजा रानी अपने राज्य की तरफ रवाना होते है। रास्ते में उसके मित्र का घर दिखता है वह वहां उसके पास जाता है और भोजन करके विश्राम करता है तभी वह मोर घर में वापस आता है और स्वर्ण हर उगलने लगता है।
राजा मोर को हार उलगते देख अपने मित्र को बुलाता है अतः मित्र सब समझ जाता है और उसे अपनी पत्नी पर लज्जा आती हैं। राजा का मित्र उससे अपनी भूल के लिए क्षमा मांगता है और राजा उसे अपने गले से लगाते हुए बोलता है कि इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है मेरी दशा ही खराब हो गई थी इस लिए तुमने ऐसा कहा।
राजा अब रानी के साथ आगे बढ़ता है उसे अपनी बहन का राज्य दिखाई देता है। राजा उसी वृक्ष के नीचे जाता है जहा उसकी बहन ने रोटी दी थी जिसको राजा ने जमीन में गाड़ दिया था। राजा और रानी जब उस स्थान को खोदते है तो उन्हें वहां हीरे जवाहरात मिलते है। अतः राजा उनको निकाल कर अपनी बहन को से आता है।
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बहन को उपहार देने के बाद राजा रानी के साथ अपनी राज्य कि और बढ़ता है। शाम होते होते वह उसी टेलन के पास पहुंचता है और उससे विश्राम करने के लिए मदद मांगता है। चूंकि बहुत दिन हो गया था तो तेलान उन्हें पहचान नहीं पाती और उन्हें आश्रय देती है।
सुबह जब नींद खुली तो वह आश्चर्य चकित हो गई क्योंकि जिस गोदाम में तेल न ने राजा रानी को विश्राम के लिए रोका था उसमे तेल की खाली टीने थी जो अब पूरी भर गई थी। तब राजा उसे बताता है कि वे दोनों वहीं अभागे है कुछ दिनों पहले जिनके चरण मात्र पड़ने से तुम्हारा गोदान खाली हो गया था। लेकिन आज दशा माता की महिमा के कारण तुम्हारा गोदाम पुनः पहले जैसा हो गया है।
अब राजा पहुंचता है उस बगीचे पर जहा उनके रुकने से पूरा बगीचा बंजर हो गया था लेकिन राजा के पहुंचते ही माली का बगीचा और भी ज्यादा सुंदर और हराभरा हो जाता है जिससे माली राजा की जय जयकार करता है और उन्हें विदा करता है।
अब राजा अपने राज्य में प्रवेश करते है राजा नल और रानी दमयंती को देख पूरा प्रदेश हर्सोल्लास से भर गया। हर तरफ खुशियों का माहौल छा गया ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दीपावली हो। राजदरबार के सभी सदस्य और जनता अपने राजा रानी का स्वागत अभिनन्दन करती है। इस प्रकार राजा नल के साम्राज्य में पुनः खुशहाली पहले जैसी हो जाती है। रानी दमयंती दशा माता की कथा व्रत करती रही और अपने पूरे प्रजा को भी दशा माता की कथा और व्रत पूजा पाठ करने को कहती है।
Dasha mata ke Bhajan
FAQ: (दशा माता की कथा से संबंधित अन्य जानकारियां)
दशा माता किसका अवतार है?
दशा माता साक्षात् नारी शक्ति मा जगत जननी की ही अवतार है जो मनुष्य के जीवन में दशा स्थिति सुधारने के लिए सबसे ज्यादा पूजी जाती है। इनका वाहक ऊंट है और इन्हे ग्रहों की दशा मनुष्य के जीवन में व्यवस्थित करने वाली देवी भी कहा जाता है।
दशा माता कौन सी देवी है?
दशा माता मनुष्य के जीवन से ग्रहों कि स्थिति और उनके जीवन की दशा सुधारने वाली जगत जननी मां जगदम्बा की देवी कहा जाता है।
दशा माता क्यों पुजी जाती है?
जैसा कि हमने अपने इस लेख में राजा नल और रानी दमयंती की कहानी पढ़ी और दशा माता की कथा के अनुसार उनकी महिमा के बारे में जाना यही इनके पूजे जाने के मुख्य कारण है।
दशा माता की पूजा कैसे करते है?
दशा माता की पूजा or दशा माता की कथा (Dasha mata ki kahani) करने के लिए महिला को चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का बेल करना होता है जिसके लिए महिलाएं कच्चे सूत के धागे से कुल दस तार बना कर उनमें दस गांठ बांध लेती है। और उसे हल्दी से रंग कर होलिका में आग दिखा कर दशा माता को अर्पित करते हुए अपने गले में धारण करती है और दशा माता की कथा और व्रत करते हुए कामना करती है कि उनके और उनके पूरे परिवार की दशा सुधरी रहे।
अन्तिम शब्द:
ऐसे करके दशा माता की कथा समाप्त होती है और भी नौ कथाएं है लेकिन उन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण राजा नल और रानी दमयंती की कहानी है। आशा करता हूं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसे ही और कहानी पढ़ने के लिए और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमें सब्सक्राइब करें, जिससे लेटेस्ट पोस्ट कि नोटिफिकेशन आप तक पहुंचे सबसे पहले। इसी के साथ मैं इस लेख को समाप्त करता हूं।
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