Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह की कहानी आप सभी लोगों को तो पता ही होगा की मां तुलसी का हमारे सनातन धर्म में कितना महत्व माना और रखा जाता है। तुलसी विवाह की कहानी क्या है (Tulsi Vivah 2024) और तुलसी मां के पूजा करने से फल क्या मिलता है तथा तुलसी के क्या-क्या गुण है इन सभी बातों पर विशेष कर चर्चा करने वाला हूँ।
लेकिन यह सब बात जानने से पहले आप लोगों को बताना चाहता हूं कि आखिर तुलसी मां कौन थीं और किन से उनकी विवाह हुई और क्यों तुलसी विवाह की कहानी इतना प्रचलित है क्योंकि यह हर हिंदू के जुबान पर रहता है। तुलसी हिंदू धर्म का एक पवित्र पौधा माना गया है।
Tulsi Vivah 2024: माँ तुलसी का विवाह किससे हुआ था ?
Tulsi Vivah Katha: तुलसी विवाह की कहानी जानने से पहले आप लोगों को पता होना चाहिए की मां तुलसी का विवाह किससे हुआ था। माँ तुलसी का विवह राक्षश राज जालंधर से हुआ था। कौन था जालंधर ?बहुत ही प्राचीन समय में सतयुग में समुद्र मंथन से प्रकट हुए मां लक्ष्मी और उसके कुछ दिन बाद प्रकट या कहे तो जन्म लिए राक्षश राज जालंधर तथा वह भी समुद्र से ही जन्म लिए थे। इसलिए मां लक्ष्मी को अपने बहन के रूप में मानते थे।
और इसी का फायदा उठाते हुए जालंधर बहुत ही अधिक पापी और अधर्मी होता चला गया। क्योंकि उसे पता था कि जब मैं भगवान का ही शाला लगता हूं तो भला इस संसार में हमारा कौन क्या बिगाड़ सकता है? और जब भी जालंधर पर किसी तरह की विपत्ति या कष्ट आ जाती थी तो तुरंत मां लक्ष्मी उसके कष्टों का निवारण के लिए या तो श्री हरि विष्णु से प्रार्थना करती थी या स्वयं उसका निदान कर देती थी। इसी का फायदा उठाते हुए राक्षस राज जालंधर और भी अधिक क्रूर, अधर्मी तथा पापी होता गया।
राक्षस राज जालंधर के कर से स्वयं त्रिदेव भी नहीं बच पाए थे। Tulsi Vivah Puja Vidhi
Tulsi Vivah 2024: राक्षस राज जालंधर का कर इतना हो गया था कि उससे स्वयं त्रिदेव भी बच नहीं पाए थे। कहा जाता है कि जालंधर बहुत ही अधिक शक्तिशाली और समुद्र का पुत्र होने के कारण बहुत ही अधिक बलवान था। और मां लक्ष्मी का भाई होने के कारण उसे कभी भी धन संपत्ति की कमी उसके जीवन में नहीं होती थी।
इसी को देखते हुए राक्षश जालंधर ने भगवान भोलेनाथ और ब्रह्मा जी को भी तंग करने लगा। और उसके प्रकोप से भगवान भी वंचित नहीं रह पाए। इसी को देखते हुए श्री हरि ने एक योजना बनाई जालंधर का वध करने के लिये।
Tulsi Vivah Puja Vidhi: मां तुलसी बहुत ही पवित्र और सती और पतिव्रता स्त्री थी।
Tulsi Vivah Puja Vidhi: मां तुलसी बहुत ही पवित्र और पतिव्रता स्त्री थी। और माँ तुलसी का विवाह राक्षश जालंधर से हुआ था। जिसके चलते भगवान को भी जालंधर का वध करने में असमंजस हो रहा था। क्योंकि माँ तुलसी भगवान श्री हरि विष्णु जी के बहुत ही बड़े भक्त थे।
और जब भी भगवान जालंधर का वध करने के लिए जाते तब माँ तुलसी का पतिव्रता उन्हें रोक देता। इसी को देखते हुए भगवान ने पहले माँ तुलसी से बात करने का सोचे। लेकिन भगवान श्री हरि विष्णु उसमें भी असमर्थ थे।
मां तुलसी की हुई पतिव्रता भंग – Tulsi Vivah Puja Vidhi
Tulsi Vivah Puja Vidhi: जालंधर वध के लिए सबसे पहले माँ तुलसी का पतिव्रता भंग करना था। इसी के चलते भगवान श्री हरि विष्णु ने अपना भेष बदलकर जालंधर का भेष धारण कर लिया। और माँ तुलसी से संबंध बनाने के लिए चल पड़े। और संबंध बना भी लिया तथा संबंध बनाने के बाद माँ तुलसी ने उन्हें परख लिया और बोलीं आप कौन है।
Tulsi Viivah Katha: तब भगवान अपना सर नीचे करके बोल कि हमें मजबूरन ऐसा करना पड़ा। क्योंकि तुम्हारे पति जालंधर का प्रकोप, क्रूरता और पाप इस संसार में बहुत ही अधिक बढ़ता जा रहा था। और आपके पतिव्रता के चलते मैं उसका वध नहीं कर पा रहा था।
इसी के चलते मुझे आपके साथ ये करना पड़ा। पतिव्रता भंग होने के बाद तुरंत ही जालंधर का वध कर दिया गया। और भगवान श्री हरि विष्णु जी मां तुलसी के आगे नतमस्तक हुए और बोले तुम्हें जो भी वरदान चाहिए बोलो पर मजबूरन मुझे ये करना पड़ा।
वरदान में क्या मांगे मां तुलसी? – Tulsi Vivah Katha
Tulsi Vivah Katha: वरदान में क्या मांगे मां तुलसी? इसका हमारे धार्मिक पुराणों में दो तरह का उल्लेख है। और हमारे समाज में भी इसे दो तरह से दर्शाया गया है। तो चलिए आज हम वह दोनों बात जानते हैं।
पहली बात ये आता है कि वरदान में क्या मांगी माँ तुलसी ने? हमारे धार्मिक पुराने के अनुसार माँ तुलसी ने भगवान श्री हरि के सर पर रहने का वरदान मांगा। और भगवान श्री हरि ने उन्हें यह वरदान दे भी दिए। इसी के चलते आज जहां कहीं भी भगवान श्री हरि या कोई भी पूजा hoti है to तुलसी पत्र की बहुत ही विशेष महत्व को दर्शाया गया है।
Tulsi Vivah Katha:और हमें भी अपने पूजा में तुलसी पत्र को अवश्य ही शामिल करना चाहिए। और जी प्रसाद से भगवान या ठाकुर जी को भोग लगाया जाता है। उस प्रसाद में भी तुलसी का पत्ता आवास डाल दे। जहां भी ठाकुर जी की पूजा होती है वहां पर तुलसी मां का पत्ता उनके सर पर चढ़ाया जाता है।
वरदान स्वरुप दूसरा वाक्य यह आता है कि वरदान में माँ तुलसी ने भगवान श्री हरि से शादी करने का प्रस्ताव रखा। और यह प्रस्ताव श्री हरि ने माँ तुलसी का पतिव्रता (Tulsi Vivah 2024) को देखते हुए स्वीकार भी कर लिया। उसी दिन से हम लोग और हमारे ग्रंथो में तुलसी विवाह का बहुत ही मत्वा दर्शाया गया है।
अगर आप अपने घर में भी पूजा करे तो आपने जो भोग लगाया है या जो प्रशाद चढ़ाया है उसमें एक या दो पत्ते तुलसी का जरूर डाल दे। इससे आपका भोग तुरंत ही भगवान के पास चला जाता है। लेकिन रविवार के दिन कभी भी तुलसी के पेड़ से एक भी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। तो प्रेम से बोलिए श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय।