Kawad Yatra: काबर की महिमा: सावन महीने में कैसे अर्पित करे महाकाल के दरबार में जल?

Kawad Yatra: आज हम आपको काबर की महिमा के बारे में बताने जा रहे हैं। महादेव के दरबार में जल चढाने के लिए कावंरिये कहां से जल उठाते है और किस तरह का जल उठाना चाहिए है और कौन जल उठा सकता है और भी कुछ आवश्यक निर्देश एवं आवश्यक सामग्री के बारे में इस आर्टिकल में हम आपको बताने बाले हैं। कांवरियों के लिए Kawad Yatra के कुछ खास नियम भी होते हैं, जिसे पालन करना बहुत जरूरी होता है। इस सारी बातों का आज हम खुलकर बताने वाले हैं और हमारा कोशिश रहेगा की कांवरियों से जुड़ी हर जानकारी हम आपको प्रदान करे। इसीलिए हम आपसे बस अनुरोध करेंगे की आप इस आर्टिकल को पुरे अंत तक पढियेगा।

Table of Contents

Kawad Yatra: कबरियो के लिए आवश्यक सामाग्री

कबरियो के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार हैं। सबसे पहले आपको केसरिया रंग का दो वस्त्र, एक बास से बना कावर को भगवा रंग से रंगा होना चाहिए, दो जल का पात्र या (डबा),अग्रबती का पैकेट और दीपक के लिए कपूर या धूप हो या अग्नि प्रज्वलित करने बाला कोई और भी सामग्री, एक थैला होना चाहिए जिसमे आप अपने सामग्री रख सको |

तथा कमसे कम एक चादर और रास्ते के लिऐ टॉर्च ले लेना चाहिए, जिससे रास्ते में अगर कही अँधेरा हो तो आपको किसी चीज का डर न हो। चलिए अब हम आपको कांवरियों के लिए कुछ जो महत्वपूर्ण नियम होते हैं उसको बताने वाले हैं।

Kanwar Yatra: कावरियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम

कांवरियों के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम होते हैं जिनका पालन किये बिना आप इस कँवर यात्रा को पूरा नहीं कर सकते हो। इन्ही में से कुछ नियम हैं जिसमें ब्रह्मचर्य का पालन करना मन-वचन, बुद्धि को शुद्ध रखते हुए भोले का स्मरण करना, सदा सत्य वचन बोलना, परोपकार एवं सेवा भावना रखना, तथा कावर उठाने से पहले स्वच्छ होकर स्नान एवं भोजन से निवृत होना जरूरी है।

अनवर यात्रा में पुरे रस्ते बोल बम का नारा लगाना, तेल साबुन का प्रयोग से वंचित रहना, जूता पहनना निषेध है और खास करके चमड़े का कोई भी सामान साथ में नहीं रखना और नाहीं पहनना होता है।

कांवरियों जल कहां से उठाते हैं? kawad yatra 2023 jal date

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kawad yatra 2023 jal date: कबरियो जल कहां से उठाते हैं कबरिया जो जल बाबा के लिए उठते है ओ बिहार के सुल्तागंज नाम की जगह है, वहां से उठाते है। क्योंकि सुल्तानगंज में मां गंगा उत्तरायण होकर बहती है। उत्तरायण का मतलब होता है उत्तर दिशा में बहना। पुरे भारत में सुल्तानगंज ही एक ऐसी जगह जहाँ माँ गंगा उत्तर दिशा में बहतीं हैं। और इसी कारण से काबरिया का सुल्तानगंज से जल उठाना बहुत ही सुबह मन जाता है।

जल उठाने से लेकर बाबा नगरी तक पूर्ण वर्णन – kawad yatra 2023 jal date

kawad yatra 2023 jal date: जल उठाने से लेकर बाबा नगरी का वर्णन इस प्रकार है: जल उठाने से पहले मां गंगा के जल में स्नान-ध्यान करके शुद्ध हो जाना होता है। उसके बाद अपने पात्र या जो भी डब्बा आपके पास है उसमें जल भर ले और फिर किसी भी बढ़िया पंडित जी से अपने जल को बढ़िया से संकल्प करा ले।

और फिर जल को उठा ले और फिर बाबा नगरी के लिए प्रस्थान कर लीजिये। जिसमें आपको रास्ते में तो ज्यादा दिकत नही होगी पर सुईया पहाड़ की चढ़ाई थोड़ा कष्टदायक होता है। पर बाबा का नाम लेते चलते रहना है क्योंकि जब आप हर हर महादेव बोलते हुऐ जायेंगे तो कुछ नहीं पता चलेगा। क्योंकि आपका हर दुख बाबा हर लेंगे।

क्योंकि जब आप बाबा की नगरी में पहुंचेंगे और जैसे ही आप मंदिर परिषर में प्रवेश करियेगा तो आपको ऐसा एहसास होगा की आप स्वर्ग में पहुँच गए हो। महादेव का नाम आपके मुख से अपने आप निकलने लगेगा। इसलिए जल उठाने से पहले इन सारी बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये।

kawad yatra 2023 jal date: जल उठाने से पहले सुल्तानगंज में स्थित बाबा अजगैबीनाथ पर जल चढ़ाना ना भूले क्योंकि लोगों का कहना है कि बाबा वैघनाथ को जल चढ़ाने से पहले अजगैबीनाथ को जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। इसलिए जल उठाने से पहले ही बाबा अजगैबीनाथ को जल जरूर से जरूर अर्पित करें और उनका आशीर्वाद ले और प्रार्थना करे की बाबा हमारे जल को स्वीकार कर लीजिये।

Kawad Yatra: अलग अलग प्रकार के कबरीया बाबा को जल चढ़ाते हैं

कमरिया कई प्रकार के होते हैं जिसमें कोई डाक बम होता है तो कोई जेनरल बमबम होता हैं। और कोई सो कर जाने बाला कावरियां होते हैं। देखिये इन सब में कुछ ही बाते अलग है जैसे अगर आप डाक कावरियां हैं तो आपको बिना रुके 24 घंटे के अंदर बाबा को जल अर्पित करना पड़ता है। तथा आपको पुरे रस्ते में कहीं भी रुकना नहीं है।

जैसे ही आप सुल्तानगंज से जल उठाते है तब आपको वह से सीधे बाबा के दरबार में ही अपने कदम रोकने हैं। तथा इस पुरे यात्रा के बिच में आपको मॉल मूत्र नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तब भी आप जल तो अर्पित कर सकतें हैं पर वो जल असुद्ध हो जाता है तथा वह बाबा पर नहीं चढ़ाना चाहिए।

वहीँ पर अगर जेनरल बम से जाते है तो आपको तीन दिन के अंदर जल अर्पित करना जरूरी है। और आप पुरे रस्ते में जहाँ चाहें वह पर रुक सकते हैं बस ध्यान ये देना है की अगर आपको मॉल मूत्र करनी है तो आप कँवर को रह दीजिये उसके बाद करियेगा और पुनः उठाने से पहले अच्छे से स्नान वगैरा कर लीजिये। पर जो लोग सो कर जाते है उनके लिए टाइम या दिन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

Kawad Yatra: सुल्तान गंज से लेकर वैघनाथ धाम पैदल यात्रा

काबरिये लोग सुल्तानगंज से पवित्र गंगा जल लेकर 105 किलोमीटर के यात्रा पर पैदल ही निकल परते है। और पैदल यात्रा के दौरान कई प्रकार का कठनाई का भी सामना करना परता है। ततपश्चात जल लेकर बाबा की नगरी वैघनाथ धाम पहुंचते है। तब जाके बाबा मनोवांछित फल प्रदान करते है।

और इस यात्रा के दौरान एक नारा आपको बार बार सुनाई देगा बाबा नगरीय दूर है पर जाना जरूर है। और लोगो में सावन महीने को लेकर विशेष महत्व है इसी लिए लोग अधिक से अधिक संख्या में बाबा नगरी पहुंचते है और जल अर्पित करते है। अनुमान के अनुसार सावन महीने में 50 से लेकर 55 लाख से अधिक शिव भक्त बाबा को जल अर्पित करने आते है।

कौन कौन लोग जाते है Kanwar Yatra में

सावन के महीने में या कोई भी दिन बाबा के पास कोई भी जा सकता है। लेकिन सावन महीने में लोग एक विशेष वस्त्र पहन कर जाते है। जिसमे लाखो की संख्या में नर या नारी, बालक, वृद्ध केसरिया वस्त्र पहन कर कांधे पर गंगा जल से भरे काबर लेकर कबरिया हरसो उलाश के साथ बोल बम का नारा लगाते हुऐ अपनी यात्रा पूरी करते है। और बाबा को जल अर्पित करते है।

स्कंद पुराण के अनुसार Kanwar Yatra कर जल चढ़ाने का महत्व

स्कंद पुराण में वर्णन के अनुसार जो भी नर नारी अपने कंधो पर काबर में जल रख कर बोल बम का नारा लगाते हुऐ अपने यात्रा को पूरी भक्ति में मग्न होकर भक्ति भाव के साथ अपनी यात्रा को पूरी करता है उस नर या नारी को अस्वमेघ यज्ञ‌ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। एक जगह पर ऐसा भी वर्णन मिलता है की भोले बाबा धूप दीप नैवेद्य से उतने खुश नही होते जितना काबर के जल से अभिषेक करने पर होते है।

सावन महीने में बाबा धाम में Kanwar Yatra कर जल चढ़ाने का विशेष महत्व है

सावन महीने में जल चढ़ाने का विशेष महत्व क्यों है इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। किसी जमाने में रावण ने खुद हरिद्वार से गंगाजल उठा कर लाया और भगवान शिव पर अर्पित किया था। ऐसे ही रावण को महापंडित नहीं कहा जाता है। आनंद रामायण के अनुसार राज अभिषेक के पश्चात भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता एवं तीन भाइयों के साथ देवघर की नगरी में आए थे। और उनके काबर में भी सुल्तानगंज का शुद्ध गंगाजल था। जिससे उन्होंने भगवान शिव को अभिषेक करके प्रसन्न किया और भगवान शिव पर चढ़ाया।


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